प्राचीन छत्तीसगढ़ का इतिहास
छत्तीसगढ़ के इतिहास जानने के स्रोत -- प्रशस्ति,शिलालेख,ताम्र पत्र लेख ,स्तम्भ लेख आदि के आधार पर छत्तीसगढ़ का इतिहास लिखा गया है।
हम छत्तीसगढ़ के इतिहास को तीन भागों मै बाँट कर अध्यन करते है----
1- प्राचीनकालीन छत्तीसगढ़ का इतिहास
2- मध्यकालीन छत्तीसगढ़ का इतिहास
3- आधुनिक कालीन छत्तीसगढ़ का इतिहास
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(1) प्राचीन छत्तीसगढ़ का इतिहास
■ प्रागैतिहासिक काल--- इसे पाषाण काल के नाम से भी जाना जाता है।इस काल मै पुरातत्विक वस्तुओ के आधार पर इतिहास लिखा गया है।जैसे चित्रकारी,किसी वस्तु का प्रतिरूप,खुदाई के आधार पर मिले साक्ष आदि आधार पर इतिहास को नया मोड़ मिलता है।
इस काल को हम अध्ययन की दृष्टि से चार भागों मै बांटा गया है---
1)--पूर्व पाषाण काल--इस काल के साक्ष रायगढ़
के सिंघनपुर गुफा तथा महानदी घाटी। से
मिलता है ।
2)--मध्य पाषाण काल --रायगढ़ के काबरा
पहाड़ में लाल रंग की छिपकिली,कुल्हाड़ी,
घड़ियाल आदि के चित्र प्राप्त हुआ।
3)--उत्तर पाषाण काल--रायगढ़ के महानदी घाटी
तथा सिंघनपुर की गुफा और बिलासपुर के
धनपुर क्षेत्र मैं।
4)--नव पाषाण काल--राजनांदगांव- चितवाडोंगरी
रायगढ़ के टेरम और दुर्ग के अर्जुनी। इस
काल में लोग अस्थाई कृषि करना प्रारम्भ
कर लिये थे।
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वैदिक काल( 1500-600ईशा पूर्व )
छत्तीसगढ़ मै इस काल का कोई साक्ष्य नही मिलता। वैदिक काल को दो भागों मै बांटा गया है -
1) ऋग्वैदिक काल (1500-1000ई.पु.)-कोई साक्ष्य नही मिलता।
2) उत्तर वैदिक काल(1000-600ई.पु.)-मान्यता है कि आर्यो का प्रवेश छत्तीसगढ़ मैं हुआ।
●नर्मदा नदी को रेवा नदी कहने का उल्लेख मिलता है।
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रामायण काल
रामायण काल--इस काल मै छत्तीसगढ़ दक्षिण कोसल का भाग था।इसकी राजधानी कुशस्थली
थी।
●भानुमंत की पुत्री कौशल्या का विवाह राजा दशरथ से हुआ।
●रामायण के अनुसार राम अपना अधिकांश समय सरगुजा के रामगढ की पहाड़ी,सीताबेंगरा की गुफा तथा लक्षमनबेंगरा की गुफा की में ब्यतीत किये।
● खरौद मै खरदूषण का साम्राज्य था।
● बारनवापारा (बलौदाबाजार) मै 'तुरतुरिया' बाल्मीकि आश्रम जहां लव - कुश का जन्म हुआ था।
● सिहावा में श्रींगी ऋषि का आश्रम था। लव- कुश का जन्म स्थल मना जाता है।
● शिवरीनारायण में साबरी जी ने श्रीराम जी को झूठे बेर खिलाये थे ।
● पंचवटी (कांकेर) से सीता माता का अपहरण होने की मान्यता है ।
● रामजी के पस्चात कोशल राज्य दो भागों मै बटा
1) उत्तर कोशल-कुश का साम्राज्य
2) दक्षिण कोशल- वर्तमान छत्तीसगढ़
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महाभारतकाल
महाभारत महाकाव्य के अनुसार छत्तीसगढ़ प्राककोशल भाग था।अर्जुन की पत्नी चित्रांगदा सिरपुर की राजकुमारी थी और अर्जुन पुत्र बभ्रुवाहन की राजधानी सिरपुर था।
● मान्यता है कि महाभारत युद्ध में मोरध्वज और ताम्रध्वज ने भाग लिए थे।
●इसी काल में ऋषभ तीर्थ गुंजी जांजगीर-चाँपा आया था।
●इस काल की अन्य बातें:-
●सिरपुर --चित्रांगतपुर के नाम से जाना जाता है।
● रतनपुर को मणिपुर(ताम्रध्वज की राजधानी)
● खल्लारी को खल्वाटिका कहा जाता है , मान्यता है कि महाभारत का लाक्षागृह कांड यही हुआ था।भीम के पद चिन्ह (भीम खोह) का प्रमाण यही मिलता है ।
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महाजनपद काल (राजधानी-श्रावस्ती)
इस काल में छत्तीसगढ़ चेदि महाजनपद के अंतर्गत आता था तथा छत्तीसगढ़ को चेदिसगढ़ कहा जाता था।
● बौद्ध ग्रन्थ अवदानशतक मै ह्वेनसांग की यात्रा का वर्णन मिलता है।
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मौर्य काल(322 ईशा पूर्व)
छत्तीसगढ़ कलिंग देश (उड़ीसा) का भाग था।जोगीमारा की गुफा से "सुत्तनुका और देवदत्त "की प्रेम गाथा का वर्णन मिलता है।
जांजगीर चाँपा--अकलतरा और ठठारी से मौर्य कालीन सिक्के मिले।
अशोक ने सिरपुर में बौद्ध स्तुप का निर्माण करवाया था।
देवगढ़ की पहाड़ी मै स्थित सीताबेंगरा की गुफा को प्राचीनतम नाट्यशाला माना जाता है।
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सातवाहन काल
सातवाहन शासक ब्राम्हण जाती के थे।चंद्रपुर के बार गांव से सातवाहन काल के शासक अपिलक का शिक्का प्राप्त हुआ।
● जांजगीर चाँपा के किरारी गांव के तालाब में काष्ठ स्तम्भ शिलालेख प्राप्त हुआ।
● इस काल के मुद्रा बालपुर(जांजगीर चांपा),मल्हार और चकरबेड़ा (बिलासपुर) से प्राप्त होते है।
● इस काल के समकालिक शासक खारवेल उड़ीसा का शासक था।
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नोट:- प्रथम सदी में नागार्जुन छत्तीसगढ़ आया था।
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वाकाटक वंश(3-4 सताब्दी)
राजधानी -नंदिवर्धन
प्रसिद्ध शासक-- 1) महेंद्रसेन --समुद्रगुप्त के दुवारा पराजित ।
2) रुद्रसेन--
3)प्रवरसेन--चंद्रगुप्त के द्वतीय का भाठ कवी कालिदास था
4)नरेंद्रसेन --नालवंशी शासक भावदत्त को हराया।
5) पृथ्वीसेन-2--पुष्कारी को बर्बाद किया।
6)हरिसेन--
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कुषाण काल
कनिष्क के सिक्के खरसिया (रायगढ़) से प्राप्त हुआ।
● इस काल में तांबे के सिक्के बिलासपुर से प्राप्त हुए।
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मेघवंश
सिक्के मल्हार से प्राप्त हुआ ।
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गुप्त काल(319-550 AD)
●इस काल में बस्तर को महाकान्तर कहा जाता था।
●छत्तीसगढ़ को दक्षिणा पथ कहा जाता था।
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