Thursday 16 February 2017

बस्तर का इतिहास

              छिन्दकनागवंश (1023-1324)

राजधानी-चक्रकोट

संस्थापक--नृपतिभूषण

प्रमुख शासक--

1) नृपतिभूषण--ऐर्राकोट अभिलेख से जानकारी प्राप्त होती है

2) धारावर्ष --बारसूर में तालाब व शिवमंदिर बनवाया ।

4) मधुरांतक देव -- नरबली का प्रमाण मिलता है ।

5) सोमेश्वर देव--जाजल्लयदेव प्रथम से हरा।

6) सोमेश्वर देव दुवितीय-

7) जगदेव भूषण

8) हरीशचंद्र देव--अंतिम शासक

नोट:--1) छिन्दक नागवंशियों ने मामा भांचा मंदिर बनवाये।

2) ये कलचुरियों के समकालीन थे।

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                     काकतीय वंश(1324-1961)

संस्थापक--अन्न्मदेव

राजधानी--मंघोता

              प्रमुख शासक

1) अन्न्मदेव (1324-1369)

       ● दंतेवाड़ा में दंतेश्वरी मंदिर का निर्माण कराया।

       ●  चक्रकोट से राजधानी मंघोता ले आया।

2) हम्मीरदेव (1369-1410)

3) भैरवदेव (1410-1468)

4) पुरुषोत्तम देव (1468-1534)

        ● मंघोता से राजधानी बस्तर लाया।

        ● बस्तर का दशहरा,गोंचा पर्व,बस्तर की रथ
            यात्रा प्रारंभ करवाया।

5) प्रतापराज देव (1602-1625)

        ● बस्तर की सेना से गोलकुंडा के कुलिकुतुब
          शाह पराजित हुआ।      

6) जगदीशराज देव

7) वीरसिंह देव

      ● राजपुर का दुर्ग बनवाया

8) राजपाल देव

9) चंदेल मामा

10) दलपतदेव (1331-1374)

    ● 1770 राजधानी बस्तर से जगदलपुर
       परिवर्तन किया  ।

      ● इसके शासनकाल में रतनपुर भोसलों के अधीन
        आया।

11) अजमेर सिंह(1774-77)

      ● क्रांति का मसिंहा।

12) दरियाव देव (1777-1800)

        ● 1777 के युद्ध में अजमेर सिंह के विरुद्ध
          षडयंत्र कर मराठो की सहायता की

         ● 6 अप्रेल 1778 दरियाव देव ने कोटपाल
         की संधि की ,परिणामस्वरूप बस्तर नागपुर
          रियासत के अंतर्गत रतनपुर के अधीन आ
           गया।

         ● बस्तर छत्तीसगढ़ का अंग बना।
             
         ● 1795 में भोपालपट्टनम संघर्ष हुआ।

13) महिपाल देव(1800-1842)

         ●
       

कांकेर के सोमवंश

संस्थापक-- सिंहराज

महत्वपूर्ण शासक ब्याघ्रराज था।

अन्य शासक-- वोपदेव, सोमराज।

कवर्धा के फणिनागवंश

संस्थापक--अहिराज

प्रमुख शासक:-- 1) गोपाल देव--1089 ई. भोरमदेव

              मंदिर का निर्माण करवाया।

● इस मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है।

● यह मंदिर नागरशैली मै निर्मित है।

2) रामचंद्रदेव--1349 में मड़वा महल का निर्माण 

                करवाया।

●  शिव का मंदिर स्थित है।

●विवाह का प्रतीक के साथ साथ दूल्हादेव भी कहा

    जाता है।

3) मोनिंग देव--

Sunday 12 February 2017

मध्यकालीन इतिहास


1) कल्चुरी वंश ( रतनपुर और रायपुर शाखा)

2) फणि नागवंश (कार्वधा)

3)सोम वंश (कांकेर)

4)छिन्दकनागवंश (बस्तर)

5) काकतीय वंश (बस्तर)

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                  कल्चुरी वंश (1000-1741)
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                  संस्थापक- कलिंगराज

प्रमुख शासक-----

                         1)कलिंगराज (1000-1020)

राजधानी-तुम्माण
चौतुरगढ़ के महामाया मंदिर का निर्माण कराया ।

                          2) कमलराज (1020-1045)

                           3) रत्नदेव (1045-1065)

●1050 में रतनपुर शहर बसाया व उसे राजधानी बनाया।

● महामाया मंदिर का निर्माण करवाया।

● रतनपुर में अनेक मंदिर व तालाब का निर्माण करवाया ।

● रतनपुर को कुबेरपुर भी कहा जाता है।

                           4)पृथ्वीदेव प्रथम

उपाधि-सकलकोशलाधिपति

●तुम्माण का पृथ्वीदेवेश्वर मंदिर का निर्माण

●रतनपुर का विशाल तालाब

●तुम्माण में बँकेश्वर मंदिर में स्थित मंडप का निर्माण करवाया।
          
                  5) जाजल्लदेव (1095-1120)

● गजशार्दूल की उपाधि धारण किया अपने सिक्के में अंकित कराया ।

● जांजगीर शहर बसाया।

● पाली के शिव मंदिर का जिर्णोधार करवाया ।

● जगतपाल इसका सेनापति था ।

● छिन्दक नागवंशी शासक सोमेश्वर को हराया ।

               6) रत्नदेव द्वतीय (1120-1135)

● अनन्तवर्मन चोड्गंग (पूरी के मंदिर का निर्माण करवाया था) को शिवरीनारायण के समीप युद्ध में हराया।

       7) जाजल्लदेव द्वतीय(1165-1168)

       8)  जगतदेव (1168-1178)

       9)    रत्नदेव तृतीय (1178-1198 )

     10)  प्रतापमल्ल ( 1198-1222 )

  ● कलचुरियों का अंधकार युग कहलाता है।

        11) बहरेंद्र साय (1480-1525 )

●कोसगई माता का मंदिर बनवाया ।

       12)  कल्याण साय (1544-1581 )

●अकबर का समकालिक था ।

● जमाबंदी प्रणाली शुरू किया । इसी के तर्ज पर कैप्टन चिस्म ने छत्तीसगढ़ को 36 गढ़ो में विभाजित किया ।

         13) लक्ष्मण साय

         14) तखतसिंह

●तखतपुर शहर बसाया था ।

          15)  राजसिंह

● गोपाल सिंह (कवी) राज दरबार में रहता था।
   रचना--खूब तमाशा

          16) सरदार सिंह

           17) रघुनाथ सिंह

● अंतिम कल्चुरी शासक
● 1741 में भोसले सेनापति भास्करपंत आक्रमण कर छत्तीसगढ़ में कलचुरियो की शाखा समाप्त किया ।

         17) मोहन सिंह

● मराठों के अधीन अंतिम शासक

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           कलचुरियो की लाहौरी शाखा

● राजधानी--  खलबाटिका (खल्लारी)     

● संस्थापक--केशव देव   

● प्रमुख शासक:--

●  रामचंद्र देव -रायपुर शहर बसाया ।

● ब्रम्हदेव-- 1409 में रायपुर को राजधानी बनाया।

● रायपुर में दूधाधारी मठ बनवाया।

● 1415 में देवपाल नामक मोची ने खल्लारी माता का मंदिर का निर्माण किया।

● अन्य शासक-- लक्ष्मीदेव

                        सिंघण देव

अंतिम शासक--अमरसिंह--1750 में मराठों ने हराया।

  
                 

              

Saturday 11 February 2017

शरभपुरीय वंश,पाण्डुवंश,सोमवंश,बाण वंश,पर्वत द्वारक वंश

                   शरभपुरीय वंश
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        राजधानी--शरभपुर (वर्तमान संबलपुर)

        उप राजधानी--श्रीपुर(सिरपुर)

        संस्थापक--शरभराज               
  
       
● प्रमुख शासक :--

   1) नरेंद्र -

   2) प्रसन्नमात्र --सर्वाधिक प्रतापी राजा
                  ● निडिला नदी (लीलागर) के किनारे
                  ● प्रसन्नपुर (मल्हार) की स्थापना किया।
                  ● विष्णु भक्त था
                  ● गरुण, शंख ,चक्र आदि सिक्के चलाये

   3) प्रवर राज --सिरपुर को राजधानी बनाया।

   4) सुदेव राज--

   5) प्रवर राज-2--इंद्रबल ने प्रवर राज-2 को मारकर
                          पाण्डुवंश की नींव डाली

नोट :-- 1) ताम्र पत्र आरंग व मल्हार से मिले।
 
          2) इस वंश के शासक वैष्णव धर्म के उपासक
              थे ।

         3) इस वंश ताम्र पत्रो व सिक्को में "गजलक्ष्मी"
             के चित्र उत्कीर्ण थे।

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               सिरपुर के पाण्डुवंश या सोमवंश

  राजधानी--श्रीपुर (सिरपुर)

● इस वंश की दो शाखा थी
     1) मैकल श्रेणी वालो को पाण्डु वंश कहा गया।
     2) दक्षिण कोशल वालो को सोम वंश कहा गया।

● प्रसिद्ध शासक

    1) उदयन -आदिपुरुष कहा जाता है ।

   2) इन्द्रबल --पाण्डुवंश की स्थापना की।    

   3) नन् राज प्रथम

  4) महाशिव तीवरदेव-- उपाधी-सकलकोशलाधिपति
                                -  पाण्डुवंश का उत्कर्ष कल

  5) ननदेव -2--- उपाधि-कोशलमंडलाधिपति
              ताम्रपत्र -अंढ़भार (जांजगीर) से प्राप्त हुआ।

   6) चंद्रगुप्त

  7) हर्षगुप्त---

        विवाह--मगध के मौखरी राजा सूर्यवर्मा की पुत्री
                  वासटा देवी से हुआ।
       
      ● हर्षगुप्त की मृत्यु के बाद उसकी स्मृति मे
         वासटा देवी ने (600 ई.) में सिरपुर के लक्ष्मण
         मंदिर का निर्माण पारम्भ करायी ।

      ● पुत्र --महाशिवगुप्त बालार्जुन

    8)  महाशिवगुप्त बालार्जुन (595-655 ई.)--
 
        राजधानी- सिरपुर

● इसका शासन काल छत्तीसगढ़ इतिहास का स्वर्ण
 काल कहा जाता है

● ह्वेनसांग 639 ईसा को छत्तीसगढ़ की यात्रा की           और अपनी रचना सी-यु-की में छत्तीसगढ़ को किया-सलो नाम से वर्णन मिलता है।

●  सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर का निमार्ण कार्य पूरा किया।

● शैव धर्म का उपासक था।

● महाशिवगुप्त बालार्जुन ,हर्षवर्धन ,पुलकेशिन-2 तथा          नरसिंहवर्मन का  समकालिक था।

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                मैकल के पाण्डु वंश
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राजधानी-अमरकंटक

शासक--1) जयबल    2) वत्सबल    3) नागबल
       
           4) भरतबल   5) शुरबल

नोट :--कलचुरियों से संघर्ष करने वाला प्रथम वंश ।

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          उड़ीसा के सोम वंश (संस्थापक -शिवगुप्त)
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शासक--महाभवगुप्त जन्मजेय

अंतिम शासक -- उदयोग केसरी

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            बाण वंश
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राजधानी--पाली ( कोरबा )

संस्थापक--महामंडलेश्वर मल्ल देव

इसने पाली के शिव मंदिर का निर्माण करवाया,

पाली में काल्पनिक पशु का चित्र है जिसका शरीर सिंह

तथा सर अन्य जीव का है ।

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          पर्वतद्वारक वंश
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शासक-- 1) सोमन्नराज  2) तुष्टिकर

क्षेत्र--देवभोग रायपुर क्षेत्र

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नल वंश

                   नल वंश (5वीं-7वीं शताब्दी)

◆ राजधानी - कोरापुट(उड़ीसा)

◆ बस्तर क्षेत्र में नालवंशियों का शासन रहा। इस में क्रमशः शासन---

   1)शिशुक (290-330 ई.)-- संस्थापक

   2) ब्याघ्रराज (330-370ई.)--समुद्रगुप्त से पराजित
                                             हुआ।

  4) वृष राज

  5) वराह राज-- वास्तविक संस्थापक,
                        ऐडेंगा( कोंडागॉंव)- मुद्रा प्राप्त

  6) भावदत्त वर्मन

  7) अर्थपति भट्टारक

  8) स्कन्द वर्मन

  9) स्तम्भराज

10) नंदराज

11) पृथ्वीराज

12) विरुपाक्ष

13) विलासतुंग (700-740 ई.)
        ● राजिम में राजीव लोचन मंदिर बनाया।
        ● विष्णु का उपासक था।

14) पृथ्वी व्याघ्र

15) भीमसेन देव

16) नरेंद्र थबल (935-960 ई)--अंतिम शासक

गुप्त काल

गुप्त काल(319-550 AD)

   ● बस्तर को महाकान्तर कहा जाता था।
   
   ● छत्तीसगढ़ को दक्षिणा पथ कहा जाता था।

   ● समुद्रगुप्त ने दक्षिण कोशल के राजा महेंद्रवर्मन
      को पराजित किया।

   ● समुद्रगुप्त ने नालवंशी शासक ब्याघ्रराज को  
      पराजित करने का साक्ष्य प्रयाग प्रशस्ति
       से मिलता है।

    ● मल्हार की मूर्तिकला में गुप्तकालीन विशेषताएं
        दिखाई पड़ती है।
  
    ● दुर्ग के बनाबरत से सवार्धिक सिक्के प्राप्त हुए।
   
    ● आरंग से भी गुप्तकालीन सिक्के प्राप्त होते है।

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                   राजर्षितुल्य वंश

  
          1) शूरा

          2) भीमसेन प्रथम

          3) दयित

          4) दयित -2

         5) विभीषण

         6) भीमसेन-2

 

शैल के आधार वर्गीकरण

आर्कियन शैल समूह- लगभग 50% भाग मै फैला है।

         ● संपूर्ण छत्तीसगढ़ में पाया जाता है।
         ● यह छत्तीसगढ़ में ग्रेनाइट,माइका शिष्ट,नीस के
           रूप में पाया जाता है।
        ● आद महाकल्प भी कहा जाता है ।

धारवाड़ शैल समूह--बस्तर में पाया जाने वाला लौह
          आयस्क इसी चट्टान में पाया जाता है।
       
        ●माइकाशिष्ट,क्वार्टज की अधिकता पाई जाती है

कड़प्पा शैल--छत्तीसगढ़ के मैदान में पाया जाता है ,
         चुने की प्रधानता पायी जाती है

गोंडवाना शैल-- इस शैल मै जीवाश्म होता है अतः
          कोयले की प्रधानता होती है।पूर्वी बघेल खंड
          का पठार तथा महानदी घाटी में पाया जाता है।

Monday 6 February 2017

छत्तीसगढ़ का प्राचीन इतिहास

                   प्राचीन छत्तीसगढ़ का इतिहास

छत्तीसगढ़ के इतिहास जानने के स्रोत --      प्रशस्ति,शिलालेख,ताम्र पत्र लेख ,स्तम्भ लेख आदि के आधार पर छत्तीसगढ़ का इतिहास लिखा गया है।
            हम छत्तीसगढ़ के इतिहास को तीन भागों मै बाँट कर अध्यन करते है----
         1- प्राचीनकालीन छत्तीसगढ़ का इतिहास

         2- मध्यकालीन छत्तीसगढ़ का इतिहास

         3- आधुनिक कालीन छत्तीसगढ़ का इतिहास

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       (1)  प्राचीन छत्तीसगढ़ का इतिहास

              ■ प्रागैतिहासिक काल--- इसे पाषाण काल के नाम से भी जाना जाता है।इस काल मै पुरातत्विक वस्तुओ के आधार पर इतिहास लिखा गया है।जैसे चित्रकारी,किसी वस्तु का प्रतिरूप,खुदाई के आधार पर मिले साक्ष आदि आधार पर इतिहास को नया मोड़ मिलता है।
              इस काल को हम अध्ययन की दृष्टि से चार भागों मै बांटा गया है---
         1)--पूर्व पाषाण काल--इस काल के साक्ष रायगढ़
               के सिंघनपुर गुफा तथा महानदी घाटी। से 
               मिलता है ।

          2)--मध्य पाषाण काल --रायगढ़ के काबरा
                पहाड़ में लाल रंग की छिपकिली,कुल्हाड़ी,
                 घड़ियाल आदि के चित्र प्राप्त हुआ।
          
         3)--उत्तर पाषाण काल--रायगढ़ के महानदी घाटी
               तथा सिंघनपुर की गुफा और बिलासपुर के
                धनपुर क्षेत्र मैं।

       4)--नव पाषाण काल--राजनांदगांव- चितवाडोंगरी
             रायगढ़ के टेरम और दुर्ग के अर्जुनी। इस
            काल में लोग अस्थाई कृषि करना प्रारम्भ
             कर लिये थे।

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            वैदिक काल( 1500-600ईशा पूर्व )       

   छत्तीसगढ़ मै इस काल का कोई साक्ष्य नही मिलता।        वैदिक काल को दो भागों मै बांटा गया है -

   1)  ऋग्वैदिक काल (1500-1000ई.पु.)-कोई साक्ष्य नही मिलता।

  2)  उत्तर वैदिक काल(1000-600ई.पु.)-मान्यता है कि आर्यो का प्रवेश छत्तीसगढ़ मैं हुआ।
    ●नर्मदा नदी को रेवा नदी कहने का उल्लेख मिलता है।

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                रामायण काल

    रामायण काल--इस काल मै छत्तीसगढ़ दक्षिण कोसल का भाग था।इसकी राजधानी कुशस्थली
थी।

●भानुमंत की पुत्री कौशल्या का विवाह राजा दशरथ से हुआ।

●रामायण के अनुसार राम अपना अधिकांश समय सरगुजा के रामगढ की पहाड़ी,सीताबेंगरा की गुफा तथा लक्षमनबेंगरा की गुफा की में ब्यतीत किये।

      ● खरौद मै खरदूषण का साम्राज्य था।
 
      ● बारनवापारा (बलौदाबाजार) मै 'तुरतुरिया' बाल्मीकि आश्रम जहां लव - कुश का जन्म हुआ था।

       ● सिहावा में श्रींगी ऋषि का आश्रम था। लव- कुश का जन्म स्थल मना जाता है।

       ● शिवरीनारायण में साबरी जी ने श्रीराम जी को झूठे बेर खिलाये थे ।

       ● पंचवटी (कांकेर) से सीता माता का अपहरण होने की मान्यता है ।

       ● रामजी के पस्चात कोशल राज्य दो भागों मै बटा
           1) उत्तर कोशल-कुश का साम्राज्य
           2) दक्षिण कोशल- वर्तमान छत्तीसगढ़

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                  महाभारतकाल

     महाभारत महाकाव्य के अनुसार छत्तीसगढ़ प्राककोशल भाग था।अर्जुन की पत्नी चित्रांगदा सिरपुर की राजकुमारी थी और अर्जुन पुत्र बभ्रुवाहन की राजधानी सिरपुर था।

● मान्यता है कि महाभारत युद्ध में मोरध्वज और ताम्रध्वज ने भाग लिए थे।

●इसी काल में ऋषभ तीर्थ गुंजी जांजगीर-चाँपा आया था।

●इस काल की अन्य बातें:-

         ●सिरपुर --चित्रांगतपुर के नाम से जाना जाता है।

        ● रतनपुर को मणिपुर(ताम्रध्वज की राजधानी)

        ● खल्लारी को खल्वाटिका कहा जाता है , मान्यता है कि महाभारत का लाक्षागृह कांड यही हुआ था।भीम के पद चिन्ह (भीम खोह) का प्रमाण यही मिलता है ।

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              महाजनपद काल (राजधानी-श्रावस्ती)

      इस काल में छत्तीसगढ़ चेदि महाजनपद के अंतर्गत आता था तथा छत्तीसगढ़ को चेदिसगढ़ कहा जाता था।

● बौद्ध ग्रन्थ अवदानशतक मै ह्वेनसांग की यात्रा का वर्णन मिलता है।

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            मौर्य काल(322 ईशा पूर्व)

    छत्तीसगढ़ कलिंग देश (उड़ीसा) का भाग था।जोगीमारा की गुफा से "सुत्तनुका और देवदत्त "की प्रेम गाथा का वर्णन मिलता है।

जांजगीर चाँपा--अकलतरा और ठठारी से मौर्य कालीन सिक्के मिले।

अशोक ने सिरपुर में बौद्ध स्तुप का निर्माण करवाया था।

देवगढ़ की पहाड़ी मै स्थित सीताबेंगरा की गुफा को प्राचीनतम नाट्यशाला माना जाता है।

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       सातवाहन काल

       सातवाहन शासक ब्राम्हण जाती के थे।चंद्रपुर के बार गांव से सातवाहन काल के शासक अपिलक का शिक्का प्राप्त हुआ।

● जांजगीर चाँपा के किरारी गांव के तालाब में काष्ठ स्तम्भ शिलालेख प्राप्त हुआ।

● इस काल के मुद्रा बालपुर(जांजगीर चांपा),मल्हार और चकरबेड़ा (बिलासपुर) से प्राप्त होते है।

● इस काल के समकालिक शासक खारवेल उड़ीसा का शासक था।
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नोट:- प्रथम सदी में नागार्जुन छत्तीसगढ़ आया था।

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                 वाकाटक वंश(3-4 सताब्दी)

  राजधानी -नंदिवर्धन

प्रसिद्ध शासक--  1) महेंद्रसेन --समुद्रगुप्त के दुवारा      पराजित ।

                        2) रुद्रसेन--
                        
                        3)प्रवरसेन--चंद्रगुप्त के द्वतीय का भाठ कवी कालिदास था

                        4)नरेंद्रसेन --नालवंशी शासक भावदत्त को हराया।

                        5) पृथ्वीसेन-2--पुष्कारी को बर्बाद किया।

                         6)हरिसेन--

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                   कुषाण काल

   कनिष्क के सिक्के खरसिया (रायगढ़) से प्राप्त हुआ।

● इस काल में तांबे के सिक्के बिलासपुर से प्राप्त हुए।

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                      मेघवंश

     सिक्के मल्हार से प्राप्त हुआ ।

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               गुप्त काल(319-550 AD)

    ●इस काल में बस्तर को महाकान्तर कहा जाता था।

    ●छत्तीसगढ़ को दक्षिणा पथ कहा जाता था।

    ●

 

                   
    

राज्य का प्रतीक चिन्ह


★  4 सितंबर 2001 को स्वीकार किया गया
        ●पृष्ठठभूमी-----सफेद रंग
        ●छत्तीसगढ़ के 36 किले-----हरा रंग(राज्य की समृद्धि वन संपदा का प्रतीक)
        ● धान की बाली------ कृषि प्रधान राज्य का प्रतीक
        ●सारनाथ स्तंभ------लाल रंग
        ●ऊर्जा चिन्ह--------नीला रंग(ऊर्जा राज्य का प्रतीक)
        ●तीन लहराती रेखाएँ-------जलसंसाधन एवं नदीयों का  प्रतीक
        ●सत्यमेव जयते------राष्ट्र के प्रति सत्यनिष्ठ
        ●तिरंगा के तीन रंग------छत्तीसगढ़ का राष्ट्र के प्रति

प्राकृतिक विभाजन

प्राकृतिक विभाजन के अनुसार चार भागों में बांटा गया है

        (१)-सरगुजा बेसिन(पूर्वी बघेलखंड का पठार)

        (२)-जशपुर सामरी पाट प्रदेश

        (३)-महानदी बेसिन

        (४)-दण्डकरण्डय का पठार

(1)-सरगुजा बेसिन---इसे पूर्वी बघेलखंड का पठार भी कहा          जाता है।

           ● क्षेत्रफल--21863 वर्ग किलोमीटर

           ● शैल--गोंडवाना शैल से निर्मित

           ● अपवाह तंत्र--सोन-गंगा अपवाह तंत्र(प्रमुख नदि-                बनास,गोपथ,रिहन्द और कन्हार)

           ● मिट्टी--लाल पीली

           ● खनिज--मुख्य रूप से कोयला

           ●औसत वर्षा-- 125 से 150 सेंटीमीटर

           ●बनस्पति--उष्णकटिबंधीय आद्र शुष्क पणपाती

(2)-जशपुर सामरी पाठ प्रदेश--क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे             छोटा पाठ प्रदेश ।

           ● छोटा नागपुर के पठार का हिस्सा हैं।

           ● क्षेत्रफल--6208 वर्ग किलो मीटर

           ● भूगर्भिक बनावट-दक्कन ट्रेप से निर्मित
          
           ● औसत वर्षा--172 सेंटीमीटर

           ● वनस्पति--उष्ण आर्द्र पणपाती वन

           ● खनिज --बाक्साइड

           ● जलवायु--उष्णकटिबंधीय मानसूनी प्रकार

           ● प्रमुख पाठ--
                
               (1) -जशपुर पाठ-सबसे बड़ा पाठ

               (2)-समरी पाठ-छत्तीसगढ़ की सबसे ऊँची
                        
                       चोटी गौरलाटा(1225 मीटर)स्थित है।

               (3)-मैनपाठ--सरगुजा जिला मै स्थित है।

                      ● तिब्बतियों का शरण स्थल।

                      ● छत्तीसगढ़ का शिमला।

                      ● छत्तीसगढ़ का इको पॉइंट।

              (4)-पंड्रापाठ- जशपुर

              (5)-जरंगपाठ-सरगुजा

              (6)-जामीर पाठ--सरगुजा

(3)महानदी बेसिन-छत्तीसगढ़ के मैदान नाम से भी 
      जाना जाता है।

        ● क्षेत्रफल--68064

        ● कडप्पा चट्टान से निर्मित

        ● प्रमुख खनिज--चुना

        ● अन्य खनिज-डोलोमाइट,सोना,हिरा,आदि

        ● औसत ऊँचाई--330 मीटर

        ● जलवायु--उष्णकटिबंधीय मानसूनी

        ● औसत वर्षा--125 सेंटीमीटर। 

●नोट----महानदी बेसिन को दो भागों में बांटा गया है।
          
          1--पश्चिमी सीमांत उच्च भूमि-यह मैकल श्रेणि
           
               का हिस्सा है।

             ● उँची चोटी-- बादरगढ़(1176 मीटर)

             ● कवर्धा और राजनंदगांव मैं फैला हुवा है।

          2--पूर्वी सीमान्त उच्च भूमि--महासमुंद,रायगढ़

               सबसे ऊंची चोटी---शिशुपाल पहाड़ पर
              
               धारीडोंगर (899मीटर) है।

(4)--बस्तर या दण्डकरण्य का पठार--

          ● क्षेत्रफल--39060

          ● ऊँची चोटी--नंदिराज(बैलाडीला)
      
          ● वर्षा--187 सेंटीमीटर

          ● जलवायु--मानसूनी

          ● भुगर्भिक बनावट--धारवाड़,ग्रेनाइड एवं निस्स
           
             पत्थर से

नोट----1-टिक किस्म का सागौन पाया जाता है।

          2-साल वनों का द्वीप कहलाता है।

          3-गोंडों की भूमि कहलाती है।

          4- सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र अबूझमाड़ है।

          5-खनिज- लोहा , हिरा , टीन आदि पाये जाते

            है।